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बासमती उत्पादक किसानों को सरकार के इस कदम से झेलना पड़ रहा नुकसान

बासमती उत्पादक किसानों को सरकार के इस कदम से झेलना पड़ रहा नुकसान

भारत संपूर्ण दुनिया का सबसे बड़ा बासमती चावल का निर्यातक देश है। यह अपनी पैदावार का लगभग 80 प्रतिशत निर्यात कर देता है। साल 2022-23 में भारत ने तकरीबन 4.6 मिलियन टन बासमती चावल का निर्यात किया है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि उत्तर प्रदेश, हरियाणा एवं पंजाब की मंडियों में बासमती धान की आवक चालू हो गई है। परंतु, इस बार कृषकों को विगत वर्ष की तुलना में बासमती धान का कम भाव मिल रहा है। किसानों का यह कहना है, कि उन्हें इस वर्ष बासमती धान की बिक्री में काफी हानि हो रही है। किसानों की मानें, तो उन्हें इस बार प्रति क्विंटल 400 से 500 रुपये कम प्राप्त हो रहे हैं। साथ ही, किसानों का यह आरोप है, कि केंद्र सरकार द्वारा बासमती चावल के मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस 1,200 डॉलर प्रति टन निर्धारित करने के चलते उन्हें काफी हानि उठानी पड़ रही है।

भारत दुनिया में सबसे बड़ा बासमती निर्यातक देश है

भारत दुनिया का सबसे बड़ा बासमती चावल का निर्यातक देश है। यह अपनी पैदावार का 80 प्रतिशत बासमती चावल निर्यात करता है। ऐसी स्थिति में इसका भाव निर्यात के कारण से चढ़ता-उतरता रहता है। यदि बासमती चावल का मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस 850 डॉलर प्रति टन से ज्यादा हो जाएगा, तो ऐसी स्थिति में व्यापारियों को काफी नुकसान होगा। इससे किसानों को भी काफी नुकसान उठाना पड़ेगा। क्योंकि व्यापारी किसानों से कम भाव पर बासमती चावल खरीदेंगे। इस मध्य खबर है, कि बासमती चावल की नवीन फसल 1509 किस्म की कीमतों में काफी गिरावट आई है। विगत सप्ताह इसके भाव में 400 रुपये प्रति क्विंटल की कमी दर्ज की गई।

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किसानों को वहन करना पड़ रहा घाटा

किसान कल्याण क्लब के अध्यक्ष विजय कपूर ने बताया है, कि मिलर्स और निर्यातक किसानों को सही भाव नहीं दे रहे हैं। वह किसानों से कम कीमत पर बासमती खरीदने के लिए काफी दबाव डाल रहे हैं। उनकी मानें तो यदि सरकार 15 अक्टूबर के पश्चात मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस वापस ले लेती है, तो किसानों को काफी अच्छा मुनाफा मिलेगा। उन्होंने कहा है, कि पंजाब के व्यापारी हरियाणा से कम भाव पर बासमती चावल की 1509 प्रजाति की खरीदारी कर रहे हैं। इससे किसानों को काफी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।

किसानों को 1,000 करोड़ रुपये की हानि होगी

हरियाणा में कुल 1.7 मिलियन हेक्टेयर रकबे में से बासमती चावल की खेती की जाती है। इसमें से लगभग 40 प्रतिशत हिस्सेदारी 1509 किस्म की है। ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विजय सेतिया के अनुसार, यदि इसी प्रकार बासमती का भाव मिलता रहा, तो किसानों को कुल मिलाकर 1,000 करोड़ रुपये का नुकसान होगा।
गेहूं के फर्जी निर्यात की जांच कर सकती है सीबीआई

गेहूं के फर्जी निर्यात की जांच कर सकती है सीबीआई

गेहूं के फर्जी निर्यात की जांच कर सकती है सीबीआई : अब गेहूं निर्यात से पहले कागजों का होगा भौतिक सत्यापन

नई दिल्ली। गेहूं के निर्यात में हो रही धांधली पर
विदेश व्यापार निदेशालय (डीजीएफटी) (Directorate General of Foreign Trade (DGFT)) ने बड़ा फैसला लिया है। क्षेत्रीय अधिकारियों को कहा है कि गेहूं निर्यात के लिए पंजीकरण प्रमाण पत्र (आरसी) जारी करने से पहले उसके कागजातों का भौतिक सत्यापन होगा। वाणिज्य मंत्रालय के आदेश पर इसकी शुरुआत हो रही है। अब देश बाहर गेहूं भेजने वालों को 13 मई या उससे पहले के लेटर ऑफ क्रेडिट (एलओसी) के साथ विदेशी बैंक के साथ हुई बातचीत की तारीख भी बतानी होगी। किसी तरह की गड़बड़ी पाई गई तो सीबीआई जांच कराई जाएगी। डीजीएफटी ने कहा कि सरकार ने 13 मई को गेंहू के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था। लेकिन उसके पहले जिन निर्यातकों ने एलओसी हांसिल किया है। वे गेहूं का निर्यात कर पाएंगे।

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जरूरत होने पर पेशेवर एजेंसी से ली जाएगी मदद

- डीजीएफटी ने कहा है कि निर्यातकों को मंजूरी मिली हो, या मंजूरी प्रक्रिया में चल रहे हों। दोनों की स्थितियों में निर्यातकों के कागजातों का भौतिक सत्यापन किया जाएगा। और जरूरत हुई तो पेशेवर एजेंसी की मदद ली जाएगी। मामले की जांच आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) से भी कराई जाएगी। और इसमें बैंकर गलत पाए गए तो उन पर कार्यवाई की जाएगी।

चावल निर्यात पर नहीं होगी पाबंदी : सरकार

- बढ़ती महंगाई के चलते आशंका जताई जा रही थी कि गेहूं के बाद चावल निर्यात पर भी प्रतिबंध लगाया जा सकता है। लेकिन अब सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि चावल के निर्यात पर कोई पाबंदी नहीं होगी। सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में चावल गोदामों में और निजी व्यापारियों के पास चावल का पर्याप्त भंडार है। घरेलू स्तर पर चावल के दाम भी नियंत्रण में हैं। इसलिए चावल के निर्यात पर पाबंदी लगाने की कोई योजना नहीं है। गेहूं और चीनी के निर्यात पर सख्ती के बीच कयास लगाए जा रहे थे कि सरकार चावल निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा सकती है। लेकिन फिलहाल ऐसा नहीं होगा।

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चावल कारोबारियों ने रोके सौदे

- गेहूं व चीनी के निर्यात पर सख्ती देख चावल कारोबारियों ने भी विदेश से होने वाले सौदे रोक दिए हैं। आंशका जताई जा रही थी कि गेहूं व चीनी के बाद चावल के निर्यात पर भी प्रतिबंध लग सकता है। लेकिन अब सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि चावल निर्यात पर कोई पाबंदी नहीं लगेगी। सरकार के इस निर्णय के बाद चावल कारोबारियों ने राहत की सांस ली है। ------ लोकेन्द्र नरवार
गेहूं निर्यात पर पाबंदी से घबराए व्यापारी, चावल निर्यात के लिए कर रहे बड़ी डील

गेहूं निर्यात पर पाबंदी से घबराए व्यापारी, चावल निर्यात के लिए कर रहे बड़ी डील

नई दिल्ली। भारत सरकार द्वारा बीते 14 मई को गेहूं निर्यात पर पाबंदी लगा दी गई थी। जिसके बाद देश के बड़े व्यापारी घबराए हुए हैं। हालांकि व्यापारियों को सरकार से उम्मीद है कि बंदरगाहों पर पड़े गेहूं को निर्यात की मंजूरी मिलेगी। लेकिन गेहूं निर्यात पर पाबंदी फिलहाल बनी रहेगी। उधर गेहूं निर्यात पर पाबंदी से घबराए बडे व्यापारियों ने चावल निर्यात के लिए डील शुरू कर दी है। अब चावल व्यापारियों ने खरीददारी बढ़ाने और लंबी अवधि की डिलीवरी के लिए ऑर्डर दिए जा रहे हैं। भारत में भारत शीर्ष चावल निर्यातक है। ऐसे में व्यापारियों को यह भी चिंता सता रही है कि कहीं भारत चावलों की शिपमेंट को भी प्रतिबंधित न कर दे। अगर ऐसा हुआ था चावल व्यापारी बड़े घाटे में रहेंगे। इससे अच्छा है कि अभी से चावल निर्यात की डील फाइनल कर दी जाए। जिससे भविष्य में कोई परेशानी खड़ी न हो।

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बता दें कि पिछले दो सप्ताह में व्यापारियों ने जून से सितंबर तक शिपमेंट के लिए 10 लाख टन चावल निर्यात के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं। और कांट्रैक्ट पर हस्ताक्षर करने के बाद जल्दी से लेटर ऑफ क्रेडिट (एलसी) खोल रहे हैं ताकि कांट्रैक्ट में तय मात्रा को जल्दी से बाहर भेजा जा सके। फिर भले ही भारत सरकार चावल निर्यात को प्रतिबंधित कर दे।

96 लाख टन के लिए कॉन्ट्रैक्ट

- व्यापारी पहले ही इस साल लगभग 96 लाख टन चावल का निर्यात कर चुके हैं। अतिरिक्त 10 लाख टन के कॉन्ट्रैक्ट इस 96 लाख टन के ऊपर किए गए हैं। आने वाले महीनों के दौरान अन्य खरीदारों के लिए उपलब्ध अनाज की मात्रा को कम किया जा सकता है क्योंकि लोडिंग शेड्यूल पूरा हो जाएगा। डेकन हेराल्ड की रिपोर्ट के अनुसार भारत के सबसे बड़े चावल निर्यातक सत्यम बालाजी के कार्यकारी निदेशक हिमांशु अग्रवाल ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय व्यापारियों ने अगले तीन से चार महीनों के लिए प्री-बुकिंग की और सभी ने लगातार कारोबार सुनिश्चित करने के लिए एलसी खोले। -----

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गेहूं पर प्रतिबंध और चावल की खरीद

- भारत ने पिछले महीने अचानक गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। जबकि कुछ दिनों पहले कहा गया था कि इस साल रिकॉर्ड शिपमेंट का टार्गेट है।

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सरकार ने चीनी निर्यात पर भी सीमा तय कर दी। चीनी निर्यात ने इस बार तमाम रिकॉर्ड तोड़े हैं। भारत एक टॉप वैश्विक गेहूं निर्यातक नहीं है, लेकिन यह ब्राजील के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चीनी निर्यातक है। इन निर्यात प्रतिबंधों ने अटकलें लगाईं कि भारत चावल के शिपमेंट को भी सीमित कर सकता है, हालांकि सरकारी अधिकारियों ने कहा कि भारत ऐसा करने की योजना नहीं है क्योंकि उसके पास पर्याप्त चावल का स्टॉक है और स्थानीय कीमतें राज्य द्वारा निर्धारित समर्थन मूल्य से कम हैं। मगर व्यापारी घबरा गए थे। इसलिए उन्होंने पहले ही चावल की निर्यात डील कर दी, क्योंकि प्रतिबंध लगने पर पहले से की गयी डील को पूरा करने की छूट मिल जाती है।

वैश्विक चावल व्यापार में भारत का हिस्सा

- वैश्विक चावल व्यापार में भारत का हिस्सा 40% से अधिक है। भारत के गेहूं प्रतिबंध के कारण बंदरगाहों पर बड़ी मात्रा में अनाज फंस गया था क्योंकि सरकार ने केवल एलसी द्वारा समर्थित कॉन्ट्रैक्ट के तहत आने वाले अनाज को भेजने की अनुमति दी थी। आम तौर पर लोग जहाज को नॉमिनेट करते समय एलसी खोलते हैं। इस बार व्यापारियों ने सभी चावल अनुबंधों के लिए एलसी खोले, इसलिए यदि निर्यात पर प्रतिबंध भी लगे, तो कम से कम अनुबंधित मात्रा वाले चावल को बाहर भेजा जा सकेगा। ------- लोकेन्द्र नरवार
अब गैर बासमती चावल के निर्यात पर लगेगा 20 फीसदी शुल्क

अब गैर बासमती चावल के निर्यात पर लगेगा 20 फीसदी शुल्क

उसना और बासमती चावल पर लागू नहीं होगा यह निर्देश

नई दिल्ली। भारत सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है, अब गैर बासमती चावल के निर्यात (rice export) पर सरकार 20 फीसदी शुल्क वसूलेगी। बताया जा रहा है कि चालू खरीफ फसल सत्र में धान की फसल का रकबा काफी घट गया है। यही कारण है कि घरेलू आपूर्ति बढाने के लिए सरकार ने निर्यात पर 20 फीसदी शुल्क बढ़ा दिया है, इसमें
उसना चावल (Usna Chawal or Parboiled Rice) को शामिल नहीं किया गया है। बृहस्पतिवार को राजस्व विभाग ने इसके लिए अधिसूचना जारी कर दी है। केन्द्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड ने बासमती (Basmati) और उसना चावल को छोड़कर सभी प्रकार की किस्मों के चावलों के निर्यात (chawal niryat) पर 20 फीसदी सीमा शुल्क लगना तय है। अभी तक खरीफ सत्र में धान की बुवाई का क्षेत्र 5.62 फीसदी से घटकर 383.99 लाख हेक्टेयर रह गया है। इसके अलावा देश के कई राज्यों में बारिश कम होने के कारण धान का बुवाई क्षेत्र घट गया है। चीन के बाद भारत चावल का दूसरा बड़ा उत्पादक देश है। वैश्विक स्तर पर भारत में चावल का 40 प्रतिशत हिस्सा है। ये भी पढ़ें - असम के चावल की विदेशों में भारी मांग, 84 प्रतिशत बढ़ी डिमांड

9 सितंबर से लागू होगा सीमा शुल्क

भारत सरकार द्वारा 9 सितंबर से चावल के निर्यात पर सीमा शुल्क लागू किया जा रहा है। बासमती व उसना चावल को इस नियम से बाहर रखा जाएगा। बताया जा रहा है कि भारत में चावल को रोकने के लिए यह नियम लागू किया गया है।

150 से अधिक देशों को गैर बासमती चावल निर्यात करता है भारत

वित्तीय वर्ष 2021-22 में भारत ने 2.12 करोड़ चावल का निर्यात किया था। जिसमें से 39.4 लाख टन बासमती चावल शामिल था। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान गैर बासमती चावल का निर्यात 6.11 अरब डॉलर का व्यापार रहा था। भारत ने पिछले वित्तीय वर्ष 2021-22 में 150 से अधिक देशों में गैर बासमती चावल का निर्यात किया था। ये भी पढ़ें - भारत से टूटे चावल भारी मात्रा में खरीद रहा चीन, ये है वजह

नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव की संभावना

चावल के निर्यात पर सीमा शुल्क लगाने के अलावा इसी महीने होने वाली नवीकरणीय ऊर्जा प्रदर्शनी यानी 'रिन्यूएबल एनर्जी इंडिया एक्सपो-2022' (Renewable Energy India Expo) में हरित उपकरणों के विनिर्माण और निर्यात को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है, साथ ही देश मे स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में स्थिति, अवसर और चुनौतियों के बारे में श्वेत पत्र जारी किया जा रहा है।

28-30 सितंबर को होगा कार्यक्रम

इन्फोर्मा मार्केट्स इन इंडिया (Informa Markets in India) द्वारा जारी विज्ञप्ति में जानकारी दी गई है कि आगामी 28-30 सितंबर को ऊर्जा के क्षेत्र में एशिया के सबसे बड़े 15वें क्रिस्टल संस्करण रिन्यूएबल एनर्जी इंडिया एक्सपो 2022 कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। यह कार्यक्रम दिल्ली के समीप उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में इंडिया एक्सपो मार्ट (India Expo Centre & Mart ) में होगा। ------ लोकेन्द्र नरवार
खरीददार नहीं दे रहे निर्यात शुल्क, बंदरगाहों पर अटक गया 10 लाख टन चावल

खरीददार नहीं दे रहे निर्यात शुल्क, बंदरगाहों पर अटक गया 10 लाख टन चावल

नई दिल्ली। भारत सरकार ने हाल ही में चावल के निर्यात (rice export) पर 20 फीसदी निर्यात शुल्क लगाने का फैसला लिया था, लेकिन विदेशी खरीददारों ने अतिरिक्त निर्यात शुल्क देने से मना कर दिया है, जिस कारण भारत का 10 लाख टन चावल बंदरगाहों पर अटका हुआ है। घरेलू बाजार में चावल की कीमतों को नियंत्रित करने के उद्देश्य से सरकार ने बीते 9 सितंबर से चावल के निर्यात पर प्रतिबंध के साथ-साथ 20 फीसदी अतिरिक्त शुल्क लागू कर दिया था। उधर निर्यातक संगठन का कहना है कि सरकार ने अचानक व तत्काल प्रभाव से अतिरिक्त शुल्क लागू कर दिया है। लेकिन खरीददार इसके लिए तैयार नहीं हैं। यही कारण है कि चावल का लदान बंद कर दिया गया है, और 10 लाख टन से ज्यादा चावल बंदरगाहों पर फंस गया है। ये भी पढ़ें – असम के चावल की विदेशों में भारी मांग, 84 प्रतिशत बढ़ी डिमांड दुनियां के सबसे बड़े चावल निर्यातक भारत द्वारा चावल पर रोक लगाने के बाद अब भारत के पड़ोसी देशों सहित दुनियाभर में चावल के लिए मारामारी होना तय है, इससे कई देशों की मुश्किलें बढ़ जाएंगी।

हर महीने 20 लाख टन चावल निर्यात करता है भारत

भारत दुनिया भर में चावल का सबसे ज्यादा निर्यातक देश है, भारत हर महीने 20 लाख टन चावल का निर्यात करता है। आंध्र प्रदेश के कनिकड़ा और विशाखापत्तनम बंदरगाह से सबसे ज्यादा लोडिंग होती है। सरकार द्वारा चावल निर्यात पर पाबंदी के बाद पूरी दुनिया में चावल पर महंगाई बढ़ना तय है। ये भी पढ़ें – भारत से टूटे चावल भारी मात्रा में खरीद रहा चीन, ये है वजह

टूटे हुए चावल की शिपमेंट भी रुकी

बंदरगाह पर अटके चावल में टूटे हुए चावल की शिपमेंट भी रुक गई है, इस चावल को चीन, सेनेगल, सयुंक्त अरब अमीरात और तुर्की देशों के लिए लदान किया जाना था। लेकिन निर्यात शुल्क में बढ़ोतरी के चलते चावल बंदरगाहों पर ही रोक दिया गया है। लोकेन्द्र नरवार
केंद्र द्वारा टूटे चावल को लेकर बड़ा फैसला

केंद्र द्वारा टूटे चावल को लेकर बड़ा फैसला

टूटे चावल व सफेद भूरा के निर्यात (Broken Rice Export) से सम्बंधित केंद्र सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। केंद्र सरकार का यह निर्णय केवल उन्हीं जारी कांट्रेक्ट के लिए स्वीकृत होगा जो कि ९ सिंतबर से पूर्व हो चुके हैं। इसकी निर्यात करने की अंतिम समयावधि 31 मार्च निर्धारित की गयी है। इसके चलते धान निर्यात करने वालों को काफी फायदा होगा। इस वर्ष मौसम की बदहाली की वजह से धान का उत्पादन बेहद कम रहा है। कठिनाइयों के पूर्वानुमान को देखते हुए केंद्र सरकार ने टूटे चावल के निर्यात पर रोक लगा दी थी और इसकी वजह से पहले से ही निर्धारित चावल के निर्यात पर भी प्रतिबंध लग गया। फिलहाल केंद्र सरकार द्वारा टूटे चावल व सफेद भूरा के निर्यात से सम्बंधित अहम निर्णय लिया गया है। सरकार द्वारा नवीन अधिसूचना के अंतर्गत 9 सितंबर से पूर्व जारी धान अनुबंध को निर्यात हेतु स्वीकृति मिल चुकी है। इसी संबंध में बहुत सारे धान निर्यातकों द्वारा बंदरगाहों में रुके इस चावल को विदेश भेजने के सन्दर्भ में सरकार समक्ष अपनी बात रखी थी, जिसके उपरांत सरकार द्वारा स्वीकृति मिल गयी है। साथ ही, अन्य चावल निर्यात फिलहाल रुका रहेगा। विशेष बात यह है कि केंद्र सरकार का यह निर्णय केवल उन्हीं जारी कांट्रेक्ट के लिए स्वीकृत होगा जो कि ९ सिंतबर से पूर्व हो चुके हैं।


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केंद्र सरकार द्वारा टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया था ?

देश में इस वर्ष बारिश की वजह से फसलों में भारी है। अधिकतर क्षेत्रों में सूखा पड़ने के चलते चावल की रोपाई संपन्न नहीं हो पायी। केंद्र सरकार द्वारा ८ सितम्बर को टूटे चावल पर रोक लगाई गयी थी। फिलहाल विभिन्न देशों को लगभग १० लाख टन चावल निर्यात किया जाना था, जिसे बंदरगाहों पर ही रोक लगने से अटक गया। इसके अतिरिक्त घरेलू आपूर्ति को भी प्रोत्साहित करने के साथ साथ खुदरा दाम को काबू करने हेतु भिन्न - भिन्न श्रेणी के चावलों के निर्यात पर भी २० % तक शुल्क निर्धारित कर दिया था।

भारत करेगा नेपाल को धान का निर्यात

भारत में धान की कम रकबे में रोपाई के बाद भी धान की घरेलू आपूर्ति संतुलित बनी हुई है। इसी के चलते केंद्र सरकार से नेपाल को भी धान निर्यात करने हेतु स्वीकृति मिल गयी है। केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचना में ६ लाख टन पिसाई रहित धान नेपाल भेजने का निर्णय लिया गया है। विशेष बात यह है कि नेपाल अपनी अधिकतर खाद्य जरूरतों के लिए दीर्घकाल से भारत पर आश्रित रहता है।

भारत द्वारा ४० % धान निर्यात किया जायेगा

आपको ज्ञात करादें कि पूरी दुनिया में धान की पूर्ति के लिए भारत से लगभग ४०% धान विभिन्न देशों के लिये भेजा जाता है। भारत के सफेद एवं भूरे चावल की सर्वाधिक मांग होती है। लेकिन कुछ देशों में टूटे हुए चावल की भी बेहद मांग है, इसकी मुख्य वजह यही है कि इससे पूर्व भी पिछले माह सरकार द्वारा ३,९७,२६७ टन टूटे चावल के निर्यात को स्वीकृति दी थी। आंकड़ों के मुताबिक वर्ष २०२२ में भारत से लगभग ९३. लाख मीट्रिक टन चावल विदेशों को निर्यात किया गया है। इस चावल में २१.३१ लाख मीट्रिक टन टूटा हुआ चावल भी सम्मिलित है। साथ ही, चावल के कुल निर्यात में २२.७७ फीसद भागीदारी टूटे हुए चावल की होती है, क्योंकि विभिन्न देशों में अच्छे चावल के साथ-साथ टूटे चावल की भी भारी मांग रहती है। टूटे चावल का इस्तेमाल शराब उद्योग, एथेनॉल उद्योग एवं यहां तक कि पॉल्ट्री एवं पशु उद्योग में भी किया जाता है।
खरीफ सीजन में बासमती चावल की इन किस्मों की खेती से होगी अच्छी पैदावार और कमाई

खरीफ सीजन में बासमती चावल की इन किस्मों की खेती से होगी अच्छी पैदावार और कमाई

भारत भर में बासमती धान का उत्पादन किया जाता है। देश के विभिन्न राज्यों में विभिन्न किस्म का बासमती चावल उगाया जाता है। परंतु, कुछ ऐसी भी प्रजातियां हैं, जिनके उत्पादन हेतु हर प्रकार का मौसम और जलवायु उपयुक्त होता है। इस बार जून के पहले हफ्ते में मानसून की शुरुआत होगी। इसके उपरांत संपूर्ण भारत में किसान धान की बुवाई करने में लग जाएंगे। दरअसल, किसानों ने धान की नर्सरी को तैयार करना चालू कर दिया है। यदि किसान भाई बासमती धान का उत्पादन करने की योजना बना रहे हैं, तो उनके लिए यह अच्छी खबर है। क्योंकि, आगे इस लेख में हम आपको बासमती धान की सदाबहार प्रजतियों के विषय में जानकारी देने वाले हैं। इन किस्मों से खेती करने पर रोग लगने का खतरा भी बहुत कम रहता है। साथ ही, काफी बेहतरीन पैदावार भी मिलती है।

बासमती चावल का उत्पादन पूरे देश में किया जाता है

ऐसे तो बासमती चावल की खेती पूरे भारत में की जाती है। लेकिन, भिन्न-भिन्न राज्यों में वहां की मृदा-जलवायु हेतु अनुकूल भिन्न-भिन्न किस्म का बासमती चावल उगाया जा सकता है। हालाँकि, कुछ ऐसी भी प्रजातियां मौजूद हैं, जिनका उत्पादन हर प्रकार के मौसम एवं जलवायु में आसानी से किया जा सकता है। इन किस्मों के ऊपर झुलसा रोग का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। साथ ही, फसल की लंबाई कम होने की वजह से तेज हवा बहने पर भी यह वृक्ष नहीं गिरते हैं। अब ऐसी हालत में किसानों की कीटनाशकों पर आने वाली लागत में राहत मिलेगी एवं धान में पोष्टिकता भी बनी रहेगी। इसकी वजह से बाजार में समुचित भाव प्राप्त होगा। ये भी देखें: धान की किस्म पूसा बासमती 1718, किसान कमा पाएंगे अब ज्यादा मुनाफा

पूसा बासमती-6 (पूसा- 1401):

पूसा बासमती-6 धान की एक सिंचित किस्म है। मतलब कि यह प्रजाति बारिश से ही अपने लिए जल की आवश्यकता को पूरा कर लेती है। यह बासमती की एक बौनी प्रजाति है। इसकी फसल की लंबाई परंपरागत बासमती की तुलना में बेहद कम होती है। ऐसी हालत में तीव्र हवा चलने पर भी इसकी फसल खेत में नहीं गिरती है। इसकी उत्पादन क्षमता 55 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है। यदि किसान भाई इसकी खेती करेंगे को उनको काफी ज्यादा उत्पादन प्राप्त हो सकेगा।

उन्नत पूसा बासमती-1 (पूसा-1460):

उन्नत पूसा बासमती-1 भी पूसा बासमती-6 की ही भाँती एक सिंचित बासमती धान की प्रजाति है। इसकी फसल 135 दिन के समयांतराल में ही पककर तैयार हो जाती है। इसका अर्थ यह है, कि 135 दिन के उपरांत किसान भाई इसकी कटाई कर सकते हैं। इसमें रोग प्रतिरोध क्षमता काफी ज्यादा पाई जाती है। अब ऐसी हालत में इसके ऊपर झुलसा रोग का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। यदि पैदावार की बात करें तो, आप एक हेक्टेयर से 50 से 55 क्विंटल धान की पैदावार कर सकते हैं। ये भी देखें: पूसा बासमती चावल की रोग प्रतिरोधी नई किस्म PB1886, जानिए इसकी खासियत

पूसा बासमती-1121:

पूसा बासमती- 1121 का उत्पादन आप किसी भी धान की खेती वाले भाग में कर सकते हैं। यह बासमती की एक सुगंधित प्रजाति है। जो कि 145 दिन के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती है। इसके चावल का दाना पतला एवं लंबा होता है। खाने में यह बेहद स्वादिष्ट लगती है। इसकी उत्पादन क्षमता 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इसके अलावा यदि किसान भाई चाहें, तो पूसा सुगंध-2, पूसा सुगंध-3 और पूसा सुगंध-5 की भी खेती कर सकते हैं। इन किस्मों की खेती करने हेतु पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर का मौसम उपयुक्त है। यह किस्में तकरीबन 120 से 125 दिन के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती हैं। साथ ही, एक हेक्टेयर जमीन से 40 से 60 क्विंटल उत्पादन मिल सकता है।
केंद्र सरकार ये कदम उठाकर चावल की कीमतों को कम करने की योजना बना रही है

केंद्र सरकार ये कदम उठाकर चावल की कीमतों को कम करने की योजना बना रही है

दुनिया के कुल एक्सपोर्ट का 40 फीसदी हिस्सा भारत के पास है। साथ ही, दुनिया का सबसे सस्ता चावल भी भारत की एक्सपोर्ट करता है। भारत, संपूर्ण विश्व को झटका देते हुए चावल की ज्यादातर किस्मों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रहा है। भारत सरकार के इस कदम से ग्लोबल मार्केट में चावल की कीमतों में और अधिक बढ़ोत्तरी देखने को मिल सकती है। साथ ही, भारत के अंदर चावल की कीमतों में कटौती देखने को मिल सकती है। दरअसल, अलनीनो की वजह से चावल के उत्पादन पर पहले से ही काफी प्रभाव देखने को मिला है। साथ ही, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चावल की कीमतें पहले ही 11 साल के हाई स्तर पर पहुंच गई हैं। भारत की तरफ से यह कदम लोकल स्तर पर चावल की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए उठाया जा रहा है। भारत के विभिन्न इलाकों में चावल की कीमतों में 20 प्रतिशत से अधिक तक की बढ़ोत्तरी हो चुकी है।

भारत सरकार गैर बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाएगी

मीडिया एजेंसियों की रिपोर्ट के मुताबिक मामले से परिचित लोगों के अनुसार, सरकार समस्त नॉन-बासमती चावल के निर्यात पर रोकथाम लगाने की योजना पर विचार विमर्श कर रही है। मीडिया को मिले सूत्रों के अनुसार, सरकार विधानसभा चुनाव और उसके उपरांत आम चुनावों से पूर्व भारत में महंगाई के जोखिम से बचना चाहती है। सरकार इस कारण से चावल की नॉन बासमती वैरायटी पर प्रतिबंध लगाने के विषय में सोच रही है। ये भी पढ़े: गेहूं निर्यात पर पाबंदी से घबराए व्यापारी, चावल निर्यात के लिए कर रहे बड़ी डील

भारत सरकार ने चावल की एमएसपी में 7% प्रतिशत की वृद्धि की थी

विशेष बात तो यह है, कि विश्व के कुल निर्यात का 40 प्रतिशत भाग भारत के पास है। साथ ही, भारत विश्व के अंदर सबसे सस्ता चावल भी निर्यात करता है। ऐसे में भारत यदि सस्ते चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाता है, तो दुनिया में चावलों के दाम में और भी इजाफा देखने को मिल सकता है। वहीं, दूसरी तरफ भारतीय चावल के निर्यात की कीमत में 9 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिल चुकी है। विगत महीने ही सरकार ने चावल के एमएसपी में 7 % प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की थी।

भारत में इस बार धान की बुवाई 26 प्रतिशत कम हुई है

गर्मियों में मानसून के आरंभ में बारिश कम होने की वजह से संपूर्ण भारत में बुवाई कम देखने को मिली है। विगत हफ्ते के आंकड़ों पर प्रकाश डालें तो समर में बोये जाने वाला चावल विगत वर्ष की तुलना में 26 प्रतिशत कम है। इसकी वजह अलनीनो को ठहराया जा रहा है, जिसका प्रभाव सिर्फ भारत पर ही देखने को नहीं मिल रहा बल्कि थाईलैंड में भी देखने को मिल रहा है। जहां पर सामान्य से 26 प्रतिशत कम बरसात होने की वजह एक ही फसल उगाने को कहा गया है।
भारत सरकार ने गैर बासमती चावल पर लगाया प्रतिबंध, इन देशों की करेगा प्रभावित

भारत सरकार ने गैर बासमती चावल पर लगाया प्रतिबंध, इन देशों की करेगा प्रभावित

केंद्र सरकार के इस निर्णय से बहुत सारे देशों में चावल की किल्लत हो जाएगी। दरअसल, भारत विश्व का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश है। भारत से बहुत सारे देशों में चावल की आपूर्ति होती है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि केंद्र सरकार द्वारा बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया है। केंद्र सरकार के इस निर्णय से बहुत सारे देशों में चावल की किल्लत हो जाएगी। विशेष रूप से उन देशों में जो चावल के लिए प्रत्यक्ष तौर पर भारत पर आश्रित हैं। सामान्य तौर पर भारत विश्व का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश है। बतादें, कि से अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका समेत एशिया महादेश के भी बहुत सारे देशों में चावल का निर्यात किया जाता है।

केंद्र सरकार ने चावल के निर्यात पर लगाया प्रतिबंध

जानकारों ने बताया है, कि भारत में खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों पर रोकथाम लगाने के लिए केंद्र सरकार ने नॉन बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया है। क्योंकि चावल भारत में अधिकांश लोगों का भोजन है। सबसे विशेष बात यह है, कि भारतीय लोग नॉन बासमती चावल का ही सबसे ज्यादा सेवन करते हैं। यदि नॉन बासमती चावल का निर्यात सुचारू रहता तो, इसकी कीमतों में भी बढ़ोतरी हो सकती थी। ऐसे में आम जनता का पेट भरना मुश्किल हो जाता। यही वजह है, कि केंद्र सरकार ने कुछ दिनों के लिए नॉन बासमती चावल पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है। ये भी पढ़े: पूसा बासमती चावल की रोग प्रतिरोधी नई किस्म PB1886, जानिए इसकी खासियत

नेपाल में इस वजह से बढ़ने वाले चावल के दाम

भारत से सर्वाधिक नॉन बासमती चावल का निर्यात चीन, नेपाल, कैमरून एवं फिलीपींस समेत विभिन्न देशों में होता है। अगर यह प्रतिबंध ज्यादा वक्त तक रहता है, तो इन देशों में चावल की किल्लत हो सकती है। विशेष कर नेपाल सबसे ज्यादा असर होगा। क्योंकि, नेपाल भारत का पड़ोसी देश है। उत्तर प्रदेश एवं बिहार से इसकी सीमाएं लगती हैं। फासला कम होने के कारण नेपाल को यातायात पर कम लागत लगानी पड़ती है। अगर वह दूसरे देश से चावल खरीदता है, तो निश्चित तौर पर निर्यात पर अत्यधिक खर्चा करना पड़ेगा। इससे नेपाल पहुंचते-पहुंचते चावल की कीमतें बढ़ जाऐंगी, जिससे महंगाई में भी इजाफा हो सकता है।

भारत ने बीते वर्ष टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था

बतादें, कि ऐसा बताया जा रहा है, कि गैर- बासमती चावल पर प्रतिबंध लगाए जाने से भारत से निर्यात होने वाले करीब 80 फीसदी चावल पर प्रभाव पड़ेगा। हालांकि, केंद्र सरकार के इस कदम से रिटेल बाजार में चावल की कीमतों में गिरावट आ सकती है। साथ ही, दूसरे देशों में कीमतें बढ़ जाऐंगी। एक आंकड़े के अनुसार, विश्व की तकरीबन आधी आबादी का भोजन चावल ही है। मतलब कि वे किसी न किसी रूप में चावल खाकर ही अपना पेट भरते हैं। अब ऐसी स्थिति में इन लोगों के लिए चिंता का विषय है। बतादें, कि विगत वर्ष भारत ने टूटे हुए चावल के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था।
केंद्र सरकार द्वारा नॉन बासमती चावल के निर्यात पर बैन लगाने से अमेरिका में हलचल

केंद्र सरकार द्वारा नॉन बासमती चावल के निर्यात पर बैन लगाने से अमेरिका में हलचल

केंद्र सरकार द्वारा भारत की जनता को सहूलियत प्रदान करने के लिए विगत सप्ताह एक निर्णय लिया गया। वर्तमान में इस निर्णय का प्रभाव अमेरिका के सुपरमार्केट्स में दिखना चालू हो चुका है। केंद्र सरकार ने चावल की कीमतों में आ रहे उछाल पर रोक लगाने के उद्देश्य से विगत सप्ताह नॉन बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। अब सरकार के इस निर्णय का प्रभाव अमेरिका में दिखना चालू हो गया। दरअसल, चावल निर्यात प्रतिबंधित होने से विश्वभर के बहुत सारे देशों में किल्लत उत्पन्न हो सकती है। लिहाजा इनकी कीमतें भी बढ़ जाऐंगी। ऐसी स्थिति में अमेरिका के लोग चावल खरीदने के लिए सुपरमार्केट्स के बाहर कतार लगाकर खड़े हो रहे हैं। अमेरिका के सुपरमार्केट में चावल खरीदने के लिए भीड़ जुट रही है। भारत चावल का सबसे बड़ा निर्यातक देश माना जाता है। वर्तमान में भारत सरकार ने देश के अंदर चावल की कीमतें कम करने के लिए यह फैसला लिया है। अब इस फैसले का असर अमेरिका ही नहीं बल्कि विश्व के विभिन्न देशों में देखने को मिल सकता है।

भारत सबसे ज्यादा इन देशों में चावल का निर्यात करता है

भारत नॉन बासमती चावल का निर्यात बहुत सारे देशों में करता है। इनमें अमेरिका के अतिरिक्त नेपाल, फिलीपींस और कैमरुन जैसे देश भी शम्मिलित हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की आधी जनसंख्या का मुख्य भोजन चावल को ही माना जाता है। वर्तमान में सामान्य बात यह है, कि एक्सपोर्ट न होने की स्थिति में इन देशों में चावल की कमी होगी। माँग एवं आपूर्ति के खेल के चक्कर में इनके भाव बढ़ने निश्चित हैं। ये भी पढ़े: अब गैर बासमती चावल के निर्यात पर लगेगा 20 फीसदी शुल्क

भारत ने नॉन बासमती चावल के निर्यात पर बैन लगा रखा है

अमेरिका में काफी बड़ी संख्या में भारतीय लोग रहते हैं। विगत सप्ताह में भारत ने जब नॉन बासमती चावल के निर्यात पर बैन लगाने का फैसला किया था, तो अमेरिका के सुपरमार्केट्स में चावल की कमी दर्ज हो गई थी। दरअसल, लोग अधिक से अधिक मात्रा में चावल खरीदने के लिए काफी ज्यादा भीड़ लगा रहे हैं। यह बहुत ही आम बात है, कि जब विश्व का सबसे ज्यादा राइस एक्सपोर्टर देश चावल के निर्यात को रोक देगा तो मांग और आपूर्ति निश्चित रूप से प्रभावित होगी। इससे चावल की विदेशो में कीमतें काफी बढ़ जाऐंगी।

अमेरिका में किस वजह से मचा हड़कंप

अमेरिका के अंदर काफी बड़ी तादाद में भारतीय रहते हैं। पिछले हफ्ते भारत सरकार ने जब ये फैसला किया तो अमेरिकी की कुछ जगहों पर नॉन बासमती चावल की आपूर्ति में कमी आने लगी। लिहाजा लोग ज्यादा से ज्यादा चावल खरीदने के लिए अमेरिका के सुपरमार्केट्स पर भीड़ लगाने लग रह हैं। इन्हें पता है, कि अब चावल की कीमतें अभी और बढ़ जाऐंगी। यहां के सुपरमार्केट्स में लोगों के मध्य चावल खरीदने की होड़ सी लग चुकी है।

भारत सरकार ने यह फैसला क्यों लिया है

भारत में बीते कुछ दिनों से टमाटर, अदरक जैसी सब्जियों की कीमतों में निरंतर बढ़ोत्तरी हुई है। टमाटर और सब्जियों के उपरांत चावल के भाव भी निरंतर बढना चालू हो गए हैं। विशेष रूप से नॉन बासमती चावल के भाव में 10 से 18 प्रतिशत तक बढ़ोत्तरी देखने को मिली है। ऐसे में सरकार ने यह निर्धारित किया है, कि इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगाया जाए जिससे कि कीमतों में और इजाफा ना हो सके।
भारत सरकार द्वारा नॉन बासमती चावल के निर्यात पर लगाए गए बैन के हटने की संभावना

भारत सरकार द्वारा नॉन बासमती चावल के निर्यात पर लगाए गए बैन के हटने की संभावना

केंद्र सरकार की तरफ से हाल में 20 जुलाई को भारत से गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके पश्चात अमेरिका से लेकर दुबई तक चावल को लेकर हाहाकार देखा गया। वर्तमान में खबर है, कि चावल का निर्यात पुनः शुरू हो सकता है। वर्तमान में केंद्र सरकार ने 20 जुलाई को भारत से गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। सरकार का कहना था, कि चावल की बढ़ती कीमतों को काबू में रखने के लिए यह कदम उठाया गया है। परंतु, क्या यही एकमात्र कारण है चावल एक्सपोर्ट पर बैन लगाने की, क्या सरकार इस बैन को फिर से हटा सकती है ? इस संदर्भ में नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने बहुत सारे संकेत दिए हैं। बतादें, कि भारत विश्व के 40 प्रतिशत चावल निर्यात पर राज करता है। इसलिए जब भारत ने चावल निर्यात पर प्रतिबंध लगाया तो दुबई से लेकर अन्य खाड़ी देशों में कोहराम सा मच गया, जहां चावल की खपत काफी ज्यादा है। साथ ही, अमेरिका जैसे देश में सुपर मार्केट के बाहर लंबी-लंबी कतारें देखी गईं। भारत 140 से अधिक देशों को चावल निर्यात करता है।

भारत सरकार ने चावल निर्यात पर इस वजह से लगाया बैन

इस संबंध में नीति आयोग के सदस्य एवं कृषि अर्थशास्त्री रमेश चंद ने कहा कि भारत इस वर्ष भी 2 करोड़ टन से ज्यादा चावल का निर्यात करेगा। इससे भारत की फूड सिक्योरिटी पर भी प्रभाव नहीं पड़ेगा। हालांकि, भारत कौ ‘गैर बासमती सफेद चावल’ के निर्यात को रोकना पड़ा है। इसकी वजह वैश्विक बाजारों में चावल की मांग का बहुत ज्यादा हो जाना है। यदि सरकार इस चावल के निर्यात पर बैन नहीं लगाती तो भारत से 3 करोड़ टन से ज्यादा चावल का निर्यात होता।

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अब गैर बासमती चावल के निर्यात पर लगेगा 20 फीसदी शुल्क उन्होंने कहा कि जब से रूस-यूक्रेन युद्ध आरंभ हुआ है, तभी से खान पान की चीजों के भाव बेतहाशा बढ़े हैं। बीते 6 से 7 महीनों में चावल और चीनी के भाव अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बहुत बढ़े हैं और इनकी मांग भी ज्यादा है। इससे घरेलू बाजार पर प्रभाव पड़ने की संभावना थी। साथ ही, सरकार का दूसरे देश की सरकार के साथ होने वाला गैर-बासमती चावल का निर्यात आज भी सुचारू है।

चावल की फसल के उत्पादन में कमी होना

चावल पर बैन का एक अन्य कारक अल-निनो की वजह से गत वर्ष मानसून को लेकर अनिश्चिता होना। फिर विलंभ से बारिश होने की वजह से बुवाई का भी विलंभ से होना। इसके पश्चात बाढ़ की वजह से विभिन्न क्षेत्रों में फसल का चौपट होना। इन समस्त कारणों से सरकार ने सावधानी भरा रुख अपनाया और चावल के निर्यात को प्रतिबंध कर दिया।

भारत आगे चलकर एक्सपोर्ट पर बैन हटा सकता है

नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद द्वारा मीड़िया एजेंसियों को दिए एक साक्षात्कार में कहा है, कि सरकार चावल के निर्यात से प्रतिबंध हटा सकती है। यह अंतर्राष्ट्रीय बाजार की डिमांड पर निर्भर करेगा। सरकार को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में एक बार चावल की मांग गिरने की प्रतीक्षा है, जिससे कि चावल के निर्यात से प्रतिबंध हटाया जा सके। वहीं, इस बात का भी विशेष ध्यान रखा जाएगा, कि इस वर्ष फसल कैसी रहती है। नई फसल का आंकलन सितंबर-अक्टूबर तक लग जाएगा, इसी के आधार पर सरकार आगामी निर्णय लेगी।
भारत की तरफ से चावल के निर्यात पर लगे बैन को लेकर कई देशों ने सवाल खड़े किए

भारत की तरफ से चावल के निर्यात पर लगे बैन को लेकर कई देशों ने सवाल खड़े किए

भारत बहुत बड़े पैमाने पर चावल निर्यात करने वाला देश है। निर्यात पर लगाम लगाने के फैसले को लेकर कनाडा, अमेरिका समेत कई सारे देशों ने सवाल खड़े किए थे। भारत ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) में कहा है, कि चावल के निर्यात पर लगाए गए रोक को प्रतिबंध नहीं मानना चाहिए। यह सिर्फ एक विनियम है। यह भारत के 1.4 अरब लोगों की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था। यूक्रेन-रूस संकट के दौरान भारत ने 20 जुलाई को गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, जिससे घरेलू आपूर्ति को प्रोत्साहन मिले एवं खुदरा कीमतों को काबू में किया जाएगा। भारत के इस निर्णय पर कनाडा एवं अमेरिका समेत कई सारे देशों ने सवाल खड़े किए थे।

भारत सरकार ने खाद्य सुरक्षा को ध्यान में रखकर फैसला लिया

विश्व व्यापार संगठन की समिति की जिनेवा में हुई बैठक के समय भारत की तरफ से कहा गया कि यह फैसला खाद्य सुरक्षा को मद्देनजर रखकर लिया गया है। भारत की तरफ से बताया गया है, कि वैश्विक परिस्तिथियों को मद्देनजर रखते हुए दिग्गजों को बाजार की स्थितियों में हेरफेर करने से प्रतिबंध करने के लिए इस फैसले के विषय में डब्ल्यूटीओ में अग्रिम सूचनाएं नहीं दी गई। इस बात की संभावना थी, अगर इससे जुडी जानकारी पहले दी जाएगी तो बड़े आपूर्तिकर्ता भंडारण करके दबाकर हेरफेर कर सकते थे। ये उपाय अस्थायी हैं एवं घरेलू मांग तथा आपूर्ति स्थितियों के आधार पर नियमित तौर से समीक्षा में जुटी हुई है।

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भारत की तरफ से जरूरतमंद देशों को निर्यात की स्वीकृति

भारत की तरफ से यह भी कहा गया है, कि प्रतिबंध के बावजूद जरूरतमंद देशों को भारत ने पूर्व में ही निर्यात की मंजूरी दी है। एनसीईएल के माध्यम से भूटान (79,000 टन), यूएई (75,000 टन), मॉरीशस (14,000 टन) एवं सिंगापुर (50,000 टन) को गैर-बासमती चावल का निर्यात किया गया है।

भारत द्वारा चावल निर्यात पर रोक को लेकर इन देशों ने उठाए सवाल

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि 40 प्रतिशत से अधिक वैश्विक निर्यात के साथ भारत विश्व भर का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश है। भारत के निर्यात पर प्रतिबंध वाले निर्णय को लेकर ब्राजील, यूरोपीय संघ, न्यूजीलैंड, स्विट्जरलैंड, थाईलैंड, ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने बहुत सारे सवाल खड़े किए थे। इन देशों की ओर से कहा गया था, कि कृषि वस्तुओं के आयात पर बहुत ज्यादा आश्रित रहने वाले देशों पर इसका प्रभाव पड़ता है।